Tuesday, November 13, 2007

बादल


बनते- बिगड़ते बादल
नई कल्पनाओं को उपजाते बादल
संदेश देते हैं -
" परिवर्तन ही जीवन है,
बदलाव ही प्रकृति है
ठहराव-स्थायित्व तो बाधा है
मृत्यु है, जड़ता है। "

अभी जो काले बादल छाए हैं
बस समय के 'जाये' हैं

अभी जो हैं, जैसे हैं -
कल नही रहेंगे
बदलेगा स्वरूप, बदलेगा आकार-प्रकार
होंगे सबके सपने साकार
बनते-बिगड़ते बादल नयी दिशायें दिखलाते बादल...

अभी जो छोटी बदली-सी दिख रही है,
अकेली दिख रही है
सदैव ऐसी थी -
दिन थे, जब वह अपनों के संग थी
खुश थी-बलखाती इठलाती फिरती थी...
पर आज...
वह दुखी है, परेशान है
किसी का सानिध्य पाने की आस है,
कौंधने कि चाह है बरसने कि प्यास है
दुनिया को बताना है-वो अकेली नही है
कोई है उसका जिसकी वो अमानत है
बनते-बिगड़ते बादल नयी आशाएं जागते बादल...

आज जो बिछड़े हैं कल वो मिलेंगे
आज जो क्षीण हैं -शक्तिहीन हैं
कल समर्थ बनेंगे-
जब सागर के ऊपर से गुजरेंगे
फिर नवजीवन का सृजन करने,
प्यासों को तृप्त करने,
फिर से नयी आशाएं जगाने,
फिरसे बिछड़ने, क्षीण-शक्तिहीन होने
वे आएंगे-
अपना कर्तव्य निभाएंगे...
बनते-बिगड़ते बादल नयी कोई रचना बनायेंगे....



विराट कुन्तलम
इंदिरा गाँधी आयुर्विज्ञान संस्थान
शिमला, हि. प्र


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2 comments:

Saurabh Kumar said...

Nice Posts. Keep writing.This poem, in particular, is really great.

Dr. Virat K. said...

Thanx a lot...
ya I will keep posting...

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