Tuesday, November 14, 2006

अजनबी...

मन आज व्यथित है, आँखें नम
शायद मन में है कोई ग़म
प्रियजन छूटे
घर
और शहर छूटे
अपने सारे छूटे,
और...
छूटा
साथ दुःख-सुख के साथी का...

आज,
इस अजनबी शहर में, 
शहर
की इस भीड़ में, 
अकेला
रह गया हूँ शायद
हँसते मौज मानते इस शहर में 
अकेला ग़ुम-सा हो गया हूँ शायद...
अकेला ग़ुम-सा हो गया हूँ शायद...


(This I wrote when I cleared AIPMT Exam and was at Indore way back in 2004 August! I was feeling very home sick and I was missing people whom I loved...) 

विराट कुन्तलम
इंदिरा गाँधी आयुर्विज्ञान संस्थान
शिमला, हि. प्र.

यादों में...

यादों में... (Written BY my MOTHER in loving memory of my FATHER) "कभी सोचा न था, दिन ऐसे भी आएँगे.. जो समझती थी खुद को रानी, वो यूँ ...