यादों में...
(Written BY my MOTHER in loving memory of my FATHER)
"कभी सोचा न था, दिन ऐसे भी आएँगे..
जो समझती थी खुद को रानी,
वो यूँ मज़बूर एक दिन हो जाएगी.!
गुम हो जाएगी होठों की मुस्कराहट,
पूनम की चाँदनी भी नज़र न आएगी..
बाट जोहती थी जिसकी सदा,
दर्शनाभिलाषी ही रह जाएगी सदा..
पल में जो करते थे सारी ईच्छा पूरी,
कभी सोचा न था होगी इतनी मज़बूरी...
दूँ कितनी भी आवाज़, बुला ना पायेंगे,
मन को कितना भी समझाऊँ भुला न पाएंगे..
सोचा न था, दिन ऐसे भी आएँगे...
आयीं कितनी सारी खुशियाँ..
बिन आपके वे होंगी फीकी,
बीती यादों के मृदु-एहसास से,
हो जैसे भी मन जायेंगीं अब,
बैसाखी, होली, दशमी, दिवाली सब..
प्रण कर आयी थी अमरीका,
चुस्त करूंगी काया अपनी..
नित्य टोकते जिस योग के लिए,
वो भी अब कर दिखलाऊँगी...
पर हाय! नियति ने क्या रंग दिखलाया,
टूटे सपने, बिखरे सब अरमान अधूरे..
चका-चौंध भी अब फीके दिखते,
नहीं कुछ अब मन को भाते..
दिन ऐसे भी आएँगे..कभी सोचा न था..
माँ-पिताजी दोनों गुज़रे,
भैया भी तो छोड़ गए..
आप ही का एक सहारा था..
इतनी जल्दी वह छिन जायेगा,
सोचा न था..
सोचा न था, कभी दिन ऐसे भी आएँगे..
मिला समाधान हरदम तत्क्षण..
कहा था आपने छोड़ कर न यूँ जाओगे,
कभी झूठ न बोलने वाले, वादा यूँ झुठलाओगे..
सपनों में भी न सोचा था...
मना भी न पाऊँ कभी, यूँ रूठ जाओगे,
दिन ऐसे भी आएँगे.. कभी सोचा न था..
रानी थी मैं आपकी.. रानी ही रहूंगी..
स्नेहाशीष से आपकी, कर्त्तव्य सभी निभाऊँगी,
स्नेहिल-स्मृतियाँ सहेज हृदय में,
दायित्व सभी सहज ही निभाऊँगी ..
पर दिन ऐसे भी आएँगे कभी सोचा न था..
कभी सोचा न था.."
- आपकी रंजन💔
(Written BY my MOTHER in loving memory of my FATHER)
(Written BY my MOTHER in loving memory of my FATHER)