"अर्द्धांगिनी, जीवन-संगिनी तुम..
मेरा आज तुम,
मेरा कल तुम,
मेरे रात और दिन भी तुम।
मेरे दिल की हर आहट में तुम..
और मेरे व्यथित-मन की राहत भी तुम।
सुख-दुख की सहभागिनी तुम..
जीवन-संगिनी, अर्द्धांगिनी तुम।
मेरा धैर्य तुम,
और करती अधीर भी तुम..!
मेरा साहस तुम,
और मेरी बड़ी दुर्बलता भी तुम..!
मेरा आन तुम,
मेरा शान तुम,
रखती सबका मान तुम,
करती रिस्तों का सम्मान भी तुम।
मेरा भाग्य तुम,
मेरा सौभाग्य तुम,
क़िस्मत को जो कर दे बुलंद
मेरे हाथों की वो लकीर भी तुम..!
मेरी सहभागिनी, जीवन-संगिनी तुम.."
-विराट्