शायद मन में है कोई ग़म
प्रियजन छूटे
घर और शहर छूटे
अपने सारे छूटे,
और...
छूटा साथ दुःख-सुख के साथी का...
आज,
इस अजनबी शहर में,
शहर की इस भीड़ में,
अकेला रह गया हूँ शायद
हँसते मौज मानते इस शहर में
अकेला ग़ुम-सा हो गया हूँ शायद...
अकेला ग़ुम-सा हो गया हूँ शायद...
(This I wrote when I cleared AIPMT Exam and was at Indore way back in 2004 August! I was feeling very home sick and I was missing people whom I loved...)
(This I wrote when I cleared AIPMT Exam and was at Indore way back in 2004 August! I was feeling very home sick and I was missing people whom I loved...)
विराट कुन्तलम
इंदिरा गाँधी आयुर्विज्ञान संस्थान
शिमला, हि. प्र.
इंदिरा गाँधी आयुर्विज्ञान संस्थान
शिमला, हि. प्र.